उत्तराखंड के इस जिले में भां”ग” की खेती का पहला ………….

न”शे” के लिए ब”द”ना”म’ भां”ग”’ पहाड़ में रोजगार का जरिया बनेगा। गढ़वाल में इसकी शुरुआत हो चुकी है, अब कुमाऊं के सीमांत जिले चंपावत में भी भां”ग की खेती की जा सकेगी।

भां”ग। एक ऐसा पौधा जो आमतौर पर न”शे” के लिए ब”द”नाम है, लेकिन इस पौधे में कई औषधीय गुण भी हैं। आयुर्वेद में भी इसका जिक्र मिलता है। भां”ग” के पौ”धों” से निकले रेशों से हस्तशिल्प तैयार होता है, अब उत्तराखंड में का”नू”नी” रू”प” से भां”ग”’ की खेती हो सकेगी। भां”ग” प”हा’ड़ में रोजगार का जरिया बनेगा। गढ़वाल में इसकी शुरुआत हो चुकी है, अब कुमाऊं के सीमांत जिले चंपावत में भी भां”ग” की खेती की मंजूरी मिल गई। जिले में भां”ग” के खेती के लिए पहला ला”इ”सें”स” जारी हो गया है। इसके अ”ला’वा’ एक अन्य फ”र्म” के ला”इ’सें’स ‘की क”वा”य”द’ अं”ति”म चरण में पहुंच चुकी है। इससे पहले राज्य के पौड़ी गढ़वाल में भां”ग” की खेती के लिए पहला ला”इ”सें”स जारी हुआ था। अब कुमाऊं में भी भां”ग” की खेती को का”नू”नी” मं”जू”री” मिल गई। चंपावत जिले में भां”ग” की खेती के लिए ला”इ”सें”स जारी हुआ है। यहां पर जो भां”ग” उगाई जाएगी, उसका प्रोडक्शन औद्योगिक इस्तेमाल के लिए होगा। यहां कम मादकता वाली भां”ग” की खेती की जाएगी। ये खेती औद्योगिक लिहाज से होगी। जिन्हें भां”ग” की खेती का ला”इ”सें”स” मिला है। उनके बारे में भी जान लें। इनका नाम है नरेंद्र माहरा।

नरेंद्र जनकंडे में खुटेली शहर के रहने वाले हैं। आबकारी विभाग के सभी तरीकों को पूरा करने के बाद, जिला मजिस्ट्रेट ने नरेंद्र महरा को कैनबिस विकास के लिए मुख्य परमिट दिया। नरेंद्र माहरा 295 हेक्टेयर भूमि में गां”जा”’ विकसित करेंगे। इसके अतिरिक्त एक और फर्म है, जिसने भां”ग” के विकास के लिए आवेदन किया है। इस फर्म का नाम टेरा फिलिक इनोवेशन ‘लि’मि”टेड है। पाटी में स्थित फर्म के प्रमुख गौरव लाडवाल ने इसी तरह भां”ग’ को विकसित करने के लिए परमिट के लिए आवेदन किया है। गौरव को 1.037 हेक्टेयर भूमि में भां”ग विकसित करने की आवश्यकता है। कार्यालय को फर्म के प्राधिकरण के साथ क”ब्जा” कर लिया गया है। परमिट जारी करने का उपाय अंतिम चरण में है।

जैसा कि जिला आबकारी अधिकारी तपन पांडे ने संकेत दिया है कि भां”ग” की फसल इस क्षेत्र में काम करेगी। इसकी किस्में का उपयोग करके कई वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है। क्षेत्र में गां”जा” की फसल के लिए ‘मु’ख्य” परमिट दिया गया है। एक और अनुमति चक्र समाप्त हो गया है।

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