उत्तराखंड में बारिश का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। फरवरी में रैणी गांव में आई आपदा से अभी लोग उभर भी नहीं पाए थे कि अब ये बारिश उनके लिए काल बनकर आई है। चिपको आंदोलन की धरती रैणी गांव खतरे में है। चार दिन की बारिश में यहां के 13 परिवारों को स्कूल में शरण लेनी पड़ी है। गांव की जमीन दरक रही है। मकान भूस्खलन की चपेट में आ रहे हैं। ग्रामीण भय के माहौल में जीने को मजबूर हैं।
बता दें कि नदी से हो रहे कटाव और धंस रही जमीन की वजह से 13 मकान पूरी तरह खतरे की जद में आ गए। इन मकानों में रह रहे परिवारों को रैणी वल्ली के स्कूल में अस्थाई तौर पर ठहराया गया है। यनीती-मलारी हाईवे के एक हिस्से के पूरी तरह ध्वस्त होने के बाद नई सड़क बनाने के लिए चार दिन पहले ही यहां गौरा देवी के स्मारक को विस्थापित करना पड़ा था। अब गांव के लोगों को विस्थापित करने की बारी आ गई है।
ग्रामीणों को स्कूल में तो ठहरा दिया गया है, लेकिन उनके लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है। न उनके पास खाने की सुविधा है और न बिस्तर की।ग्रामीण भविष्य को लेकर चिंतित हैं। उन्हें नहीं पता अब उनके गांव का क्या होगा। इस बरसात में उन्हें भी कहीं और जाना पड़ेगा या फिर आपदा की भेंट चढ़ जाएंगे। बता दें कि ये वहीं गांव है जिसने उत्तराखंड को पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से पहचाई दिलाई। पर्यावरण और प्रदेश को बचाने के लिए जिस रैणी देवी ने अपनी जान तक न्यौछावर कर दी है। आज हम उसी रैणी गांव को नहीं बचा पा रहे है।