उत्तराखंड की धरती को अगर आंदोलनों की धरती कहा जाए तो गलत नहीं होगा। यहां छोटे बड़े कई आंदोलनों ने यह सिद्ध किया है कि यहां की मिट्टी में पैदा हुआ हर इंसान अपने हक की लड़ाई लड़ना जानता है, फिर वो पुरुष हो या फिर महिला… लेकिन उत्तराखंड को बचाने वाले आंदोलनकारियों की विरासत को हम संजो नहीं पा रहे है।
आज हम बात कर रहे है उत्तराखंड के रैणी गाँव की गौरा देवी की। गौरा देवी का रैणी गांव आपदा की जद में है। उनकी विरासत खत्म होने की कगार पर है। गांव के घरों में दरारे पड़ गई है। एक महान नेत्री के गांव की ये दशा दिल झकजोड़ कर रख देने वाली है।
बता दें कि चमोली के रैणी क्षेत्र में 7 फरवरी को प्राकृतिक आपदा आई थी। जिसके बाद से रैणी गांव में लगातार भूस्खलन हो रहा है लेकिन शासन-प्रशासन आंखे मुंदे हुए है। गांव वासियों की सुध लेने वाला कोई नहीं । जिन सहेलियों के साथ गौरा देवी ने पर्यावरण को बचाया था जो उनके साथ कांधे-से कांधा मिलाकर खड़ी थी उनकी मकानों पर भी धीरे-धीरे दरार पड़ने लगी हैं ।
गौरा देवी के नाम से बनाया गया म्यूजियम भवन भी धराशाई होने की कगार पर है। भवन के चारों तरफ मोटी मोटी दरारें पड़ चुकी हैं जिससे भवन कभी भी गिर सकता है।अपनी विरासत संजोकर रखने के हमारे दावे खंडहर होते गौरा देवी म्यूज़ियम के साथ बिखरते-ढहते नजर आते हैं।
गांव के लगभग 50फीसदी भवन भूस्खलन की जद में हैं। गांव के निचले इलाकों में दरारें पड़ चुकी हैं। ऋषि गंगा का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है जिससे गांव वालों में दहशत और बढ़ रही है। हालांकि अब गांव में सर्वे कर ग्रामीणों को सुरक्षित स्थान पर ठहराने की बात कही जा रही है।